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सा विट् सु॒वीरा॑ म॒रुद्भि॑रस्तु स॒नात्सह॑न्ती॒ पुष्य॑न्ती नृ॒म्णम् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sā viṭ suvīrā marudbhir astu sanāt sahantī puṣyantī nṛmṇam ||

पद पाठ

सा। विट्। सु॒ऽवीरा॑। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒स्तु॒। स॒नात्। सह॑न्ती। पुष्य॑न्ती। नृ॒म्णम् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन प्रजा उत्तम है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सुवीरा) सुन्दर वीरोंवाली (विट्) प्रजा (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (सनात्) सनातन व्यवहार में (नृम्णम्) धन को (पुष्यन्ती) पुष्ट करवाती और पीड़ा को (सहन्ती) सहनेवाली वर्त्तमान है (सा) वह हमारे लिये (अस्तु) होवे ॥५॥
भावार्थभाषाः - वही स्त्री श्रेष्ठ है जो ब्रह्मचर्य्य से समग्र विद्याओं को पढ़ के शूरवीर पुत्रों को उत्पन्न करती है और वही सहनशील तथा कोशवाली होती है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

का प्रजा उत्तमेत्याह ॥

अन्वय:

या सुवीरा विट् मरुद्भिः सनात् नृम्णं पुष्यन्ती पीडां सहन्ती वर्त्तते साऽस्माकमस्तु ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सा) (विट्) प्रजा (सुवीरा) शोभना वीरा यस्यां सा (मरुद्भिः) मनुष्यैः (अस्तु) (सनात्) सनातने (सहन्ती) सहनं कुर्वती (पुष्यन्ती) पुष्टं कारयित्री (नृम्णम्) धनम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - सैव स्त्री वरा या ब्रह्मचर्येण समग्रा विद्या अधीत्य शूरवीराँस्तनयान् प्रसूते सहनशीला कोशिका भवति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी ब्रह्मचर्याने संपूर्ण विद्या शिकून शूर वीर पुत्रांना उत्पन्न करते व सहनशील असून विविध पदार्थांचा कोश बाळगते तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ ५ ॥